बन्ना चाहा ज़िन्दगी में कुछ,
तो छोड़ आये पीछे बहुत कुछ,
अब इतनी दूर आ चुके है,
कि याद न रहा कहाँ से चले थे|
सपनो की उड़ान पाने को,
ज़िन्दगी में कुछ कर जाने को,
निकले थे घर से हम,
होंगे न अब होंसले ये कम |
दुनियादारी की बेड़िया, न पकड़ पाएंगी अब हमे,
आज रात है हम यहाँ, तो होंगे और कहीं कल सुबहे,
अब इतनी दूर आ चुके है हम,
कि याद न रहा कहाँ से चले थे|
रास्ते में बहुत से है कांटे,
जैसे पड़े हो तीर और भाले,
चलते चलते खायी है कई ठोकरें,
गिर गिर कर उठ कर है हम संभले,
कभी कभी सोचते है कि,
क्या होता अगर सुनते दुनिया की,
पर...
अब इतनी दूर आ चुके है हम,
कि याद न रहा कहाँ से चले थे|
पैरो में जान थी जब चले थे,
थोड़ी जान बाकी है अभी भी,
और थोड़ी बाकी रहेगी भी,
जब तक यही यादें याद आती रहेंगी,
सच ...
अब इतनी दूर आ चुके है हम |
कि याद न रहा कहाँ से चले थे ||
Good One dude
ReplyDelete:) nice one
ReplyDeletethanx :)
ReplyDeletevery sensitive and touching poetry.
ReplyDeleteGood good:)
thnx Saurav :)
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